Monday, May 30, 2016

मॉर्निंग वॉकर्स की किस्में .....कपिल जैन



मॉर्निंग वॉकर्स की किस्में
            .....कपिल जैन

नॉएडा आने से पहले हम दिल्ली करोल बाग़ में रहते थे, अतः मॉर्निंग वाक के लिए ’बुद्ध जयंती पार्क’ जाया करते थे और सन्  2004 में नॉएडा सेक्टर44  मे आने के बाद तो सी ब्लाक फाउंटेन पार्क जिंदाबाद । 

करोल बाग़ के नज़दीक और सबसे अच्छा बड़ा साफ़ सुथरा पार्क ’बुद्ध जयंती पार्क’ है , जो सन् 1964 में भगवान बुद्ध के 2500 निर्वाण महोत्सव के रूप में जापानी सहयोग से बना , सन् 1993 मे दलाई लामा साहिब के सानिध्य मे भगवान बुद्ध की एक सुनहरे रंग की बेहतरीन गरिमापूर्ण प्रतिमा स्थापित हुई ।

यहाँ चर्चा का विषय "बुद्ध जयंती पार्क" से लेकर सेक्टर44 के पार्कों मे आने वाले मॉर्निंग वॉकर्स की विविध किस्मों के सन्दर्भ में मेरी अपनी ऑब्जरवेशन है , मै ग़लत भी हो सकता हूँ , अतः कोई बात बुरी लगे तो माफ़ी दीजिये ।

मोर्किंग वॉकर्स में प्रमुखतः दो किस्मे पायीं जातीं हैं
पहली किस्म : उठे हुए कहिए या दीवाने
दूसरी किस्म  : धकेले हुए
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पहली किस्म : उठे हुए कहिए या दीवाने की शान मे ’शकील बदायूँनी’ का यह शेर

कुछ कम ही ताल्लुक़ है मोहब्बत का जूनून से,
दीवाने तो होते ही है बनाये नहीं जाते...

दीवानेपने की हद आप खुद ही सोचिये , एक धुंध भरी सर्द सुबह हो और रज़ाई से निकलना तो दूर , हाथ बाहर करने का भी दिल ना चाहे , इस स्थिति के बावजूद कोई टोपी मफलर दस्ताने पहने मॉर्निंग वाक के लिए प्रतिदिन पहुंचे और साथ यह भी कहे, ’यारो वाक करने का मज़ा तो सर्दियों में ही है’ , इस स्थिति  में कोई रज़ाई से पार्क पहुंचे , तो वह बौद्धिक स्तर पर भी तो उठ ही गए , उन्होंने नींद की गुलामी से मुक्ति जो पा ली है , यह तो सिर्फ एक मौसम की मिसाल भर है , गर्मी हो , बरसात हो , दीवाने मॉर्निंग वॉकर्स सुबह पांच छै बजे तक पार्क पहुँच चुके होते है , उनकी सुबह-चर्या बिल्कुल सेट हो चुकी होती है , पहले वाक करेंगे योग फ़िर प्राणायाम जाने क्या क्या , जब तक बाकी दुनिया बिस्तरे से उठती है , वह पार्क से घर पहुँचकर चाय एवं न्यूज़ पेपर का मज़ा ले रहे होते है , हम कभी भूले भटके सुबह जल्दी पार्क पहुचे तो उनसे गेट पर मुलाक़ात होती जाती है , हम अंदर जा रहे होते है वो बाहर आ रहे होते है।

बुद्ध पार्क में कोई दीवाना आपको दातुन, मिश्री , इलाइची , काली मिर्च इत्यादि भी गिफ्ट कर देते थे , इस हिदायत के साथ काली मिर्च सुबह सुबह आँखों के लिए बहुत मुफ़ीद है और अगर काली मिर्च चिरमिरी लगे को मिश्री भी खा लेना बहुत स्वादिष्ट लगेगा , अत्यंत खेद से कहूँ, तो नॉएडा मे इतने उठे हुए अभी नहीं है । इस किस्म का आयु वर्ग भी लगभग पैंसठ साल से ऊपर ही है । नमस्ते का जवाब भी बहुत आनन्द दायक होता है आपने कहा नमस्ते तो जवाब आयेगा ”नमस्ते जी नमस्ते प्रभु का शुक्रिया क्या मज़ा आ रहा है, मई जून की उमस भरी गर्मी में भी डायलाग वही मज़ा आ रहा है भाई पसीना निकलना भी कितना ज़रूरी है । जन्मदिन या मैरिज एनिवर्सरी की पार्टी भी देनी या लेनी नहीं भूलते , जीवन का पूरा लुल्फ़ लेते है यह उठे हुए दीवानो की किस्म।
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दूसरी किस्म  : धकेले हुए का अर्थ : कोई चिंता पीठ पर धक्का मार रही है , किसकी वजह से मजबूरी मे पार्क आना  पड़ रहा है : इस किस्म के मॉर्निंग वॉकर वो होते है जिनको बुनियादी तौर से आलसी या उन्हें अपनी नींद से बहुत प्यार होता है , बिस्तर , रज़ाई या एयर कंडीशनर रूम , टीवी , लेट नाईट पार्टी , नाईट शो मूवी पोपकोर्न के साथ इत्यादि इत्यादि इनके ख़ास शौक होते है , अपनी सेहत के रख रखाव के लिए बहुत बढ़िया महँगे वाले स्पोर्ट शू और ट्रेडमिल खरीद कर भी लाएंगे वो बात अलग है की कुछ ही दिनों में उस ट्रेडमिल पर आपको कपडे सूखते दिखाई देंगे , सामान्यतः ये वजन मे भारी यानी overweight होते हैं , एक उम्र के पड़ाव तक आते आते दवाई की एक-दो गोली दिनचर्या का हिस्सा हो जाती है , डॉक्टर साहिब की हिदायत आ चुकती है की मॉर्निंग वाक 40 -45 मिनट्स की नहीं हुई , तो गड़बड़ तय है , अंदर ही अंदर खुद को भी सारी स्थिति स्पष्ट होती है, पर इस मन का क्या , एयर कंडीशनर रूम बनाम उमस भरी सुबह, गरमागर्म रज़ाई बनाम सर्द सुबह ।

यह बात तो तय है, धकेले हुए मॉर्निंग वॉकर को पार्क में आना बहुत दुश्वार लगता है , पर आने के बाद बहुत अच्छा लगता है उसके बाद सारा दिन बहुत ऊर्जावान गुजरता है
इसके बाद की क्रमवार श्रृंखला कुछ यूं है की वो 365 दिनों में एब्सेंट बहुत मारता है , जिस दिन मॉर्निंग वाक नहीं करता , दिल में सारा दिन एक गिल्ट महसूस करता है , चार पांच साल तक की एब्सेंट से भरी धक्का-शाही की आधी अधूरी मॉर्निंग वाक चलती है , इसके बाद कोई ना कोई मेडिकल रिपोर्ट मे कबाड़ हो जाता है , फिर शुरू होती है आर या पार की मॉर्निंग वाक ,  इस दौरान कोई उठा हुआ दीवाना मॉर्निंग वॉकर, आपको प्रतिदिन खींचता शुरू कर देता है , जो खुद कभी धकेला हुआ था , जो सारी स्थिति को समझता है , धीरे धीरे आप भी उठे हुऐ दीवानो की किस्म होने की तरह अग्रसर हो जाते हैं। रेगुलर पार्क जाते है । 

और आखिर मे धकेले हुए मॉर्निंग वॉकर की शान मे हबीब जालिब साहिब का शेर :

एक मुझे आवारा कहना , कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं,
दुनिया वाले दिल वालो को और बहुत कुछ कहते है....

Story by Kapil Jain 
May, 2016
Kapilrishabh@gmail.com
All right reserved 

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Photograph by By S. Parmeet Chadha B-74

बायें से दायें : पहली किस्म : उठे हुए कहिए या दीवाने :
सर्वश्री सुमित बंसल जी (C-183), अशोक मेहरा जी (C-6), कौशिक जी (C-169), सुदेश जिंदल जी (C-213), सुरेंद्र गर्ग जी (C-64),  अमित बंसल जी (C-183), मनोज सचदेव जी (C-90), छाबड़ा जी (C-163), चरणजीत चड्ढा जी (B-74), मैनी जी (C-63), राज सचदेव जी (C-90), प्रमोद खन्ना जी (Kartik Kunj) , योगेश आनंद जी (C-62) , के सी शर्मा जी (C-40), सुभाष चौहान जी (C-5) , कुलदीप राणा जी (C-35), गुरदीप चढ़ा जी (C-263) प्रमोद शर्मा जी (C-89)
बैठे हुए : धकेले हुए किस्म : कपिल जैन (C-145)


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