Sunday, November 15, 2015

Nov 15, 2015

ऐ वक़्त मेरे हाथों मे इक और लकीर खींच ,
वो मेरी ज़ीस्त मे दबे पाँव आया है....
                                .......भारती चोपड़ा

ज़ीस्त : ज़िन्दगी : Life
                      
"Future of a promising sailor"
Painting by Francesco Bergamini,
Italian, 1815 - 1883

Sunday, November 1, 2015

Ahista chal zindagi by Gulzar


आहिस्ता चल ज़िन्दगी
कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है

कुछ दर्द मिटाना बाकी है
कुछ फर्ज़ निभाना बाकी है

रफ़्तार मे तेरे चलने से कुछ रूठ गए
कुछ छुट गए

रूठो को मनाना बाकी है
रोतो को हँसाना बाकी है

कुछ हसरते अभी अधूरी है
कुछ काम अभी और ज़रूरी है

ख्वाईशें जो घुट गयी है दिल मे
उनको दफनाना बाकी है

कुछ रिश्ते बन कर टूट गए
कुछ जुड़ते जुड़ते छुट गए

उन टूटे छूटे रिश्तों के ज़ख्मो को मिटाना बाकी है

तू आगे चल , मै आता हूँ
क्या छोड़ तुझे ज़ी पाऊँगा ?

इन साँसों पे हक़ है जिनका
उनको समझाना बाकी है

आहिस्ता चल ज़िन्दगी
कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है

                   .......गुलज़ार