Tuesday, June 16, 2015

Kapil Jain : Story : Lost Priorities



Kapil Jain : Story : Lost Priorities

बात जो कहने जा रहा हूँ , अगर बुरी लगे तो माफ़ी देना , पर कह रहा हूँ पूरे होशों हवास मे |

इसे एक चुभती हुई बात कहिये या अपनी गलती या पता नहीं क्या है यह , हुआ यूं की करीब दस साल पहले , हम करोल बाग़ दिल्ली से नोएडा शिफ्ट हुऐ थे |

अभी घर मे काफी फर्नीचर इत्यादि बनना बाकि था , करीब चार पांच दिन ही हुऐ थे , पूरे घर मे कोई भी कमरा पूरी तरह व्यवस्थित नहीं था , कुछ सामान पुराने घर से नहीं आया था , क्योंकि अभी तक ऑफिस पुराने घर के पास था अतः प्रतिदिन थोडा थोडा सामान आ जाता था और अपनी नयी जगह सेट हो जाता था |

एक शाम , सामान मे कुछ पुराने दस्तावेज़ की फ़ाइले मेरी माँ की अलमारी से आये , जो कुछ बहुत खानदानी विरासत लिए हुए लगते थे अतः मैने अपनी माँ के कमरे में उन्हें बताते हुऐ कहा , आप इन्हें देख लेना , माँ लेटी हुई आराम कर रही थी , बोली की बहुत थक गयी हूँ कल देखूँगी |

अगली रात देर हुई जब मे घर वापस आया तो बहुत ही थक गया था , माँ बहुत ही देर से मेरा इंतज़ार कर रही थी , उन्होंने मुझे एक फ़ोटो देते हुए कहा , की यह आपकेे पड़बाबा जी की एक मात्र फ़ोटो है , इसे बहुत संभाल के रखना , मैने पहली बार अपने पड़बाबा जी की फ़ोटो देखी थी , मुझे बहुत ही ख़ुशी हुई , अभी तक मेरा अपना कमरा और अलमारियां भी सेट नहीं हुई थी , मैने बहुत ही ध्यान से फ़ोटो अपनी एक किताब के अंदर रख दी |

कुछ हुआ यूं कि अगले दिन ही मुझे कही दूसरे शहर एक हफ्ते के लिये जाना पड़ा | जब वापस आया तो पाया , घर काफी कुछ व्यवस्थित था , बहुत ही अच्छा लग रहा था | क़रीब दस पंद्रह दिन हुए , नाश्ते पर माँ ने मुझसे कहा की पड़बाबा जी की फ़ोटो को फ्रेम करवा देना , सुनते ही मेरा माथा ठनक गया , मेरी सारी किताबे उस जगह से हट कर स्टडी की अलमारीयो मे सेट हो चुकी थी , मुझे यह भी याद नहीं था की मैने किस किताब मे फ़ोटो रखी थी | माँ ने सिर्फ़ मेरी शक़्ल से ही सारी बात समझ ली , कुछ नहीं कहा | 

मैं ऑफिस चला गया , ऑफिस मे भी आधा दिमाग़ फ़ोटो में ही रहा , शाम देर से ही घर वापस पंहुचा , डिनर करते ही , एक एक करते छः दर्ज़न किताबो का पन्ना पन्ना छान मारा आधी रात हो गयी , फ़ोटो का कोई अता पता नहीं | सुबह नाश्ते पर माँ ने सिर्फ़ शक्ल देखी कुछ नहीं बोली | अगले दिन संडे था , दुनिया जहान का काम छोड़ कर मैने सारी किताबे फिर पलट दी , भगवान जाने फ़ोटो कहा गयी | मै बहुत परेशान हो गया | माँ सारी बात समझते हुए भी चुप थी | 

महीने दो महीने निकल गए | मै भी अब यह बात लगभग भूल गया | फिर एक दिन ना जाने कैसे घर की फर्नीचर की बात करते करते फ़ोटो का ज़िक्र आ गया | मैने माँ से कहाँ की माँ मुझसे बहुत गलती हो गयी पड़बाबा जी की फ़ोटो मुझसे गुम हो गयी , बोली की मुझे पता था की वोह फ़ोटो गुम गयी हैं , जो हुआ शायद यही नियति थी , आख़िर तीन पीढ़ी का संभाल रखना वैसे भी बहुत मुश्क़िल है और वैसे भी यह सब प्राथमिकता की बात है |

माँ का "प्राथमिकता" वाला आख़री वाक्य कही दिल को लग गयी, इस वाकिय के करीब आठ साल बाद माँ का देहांत हो गया और अब दो साल और गुजरे की अचानक फ़ोटो मिली किसी किताब से....

वैसे राजमहलों के अलावा कही देखी है तीन पीढी की फ़ोटो ? सही है , बात तो प्राथमिकता की है.....

Story : Lost Priorities
By Kapil Jain,
C - 145, Sector - 44, Noida
+919810076501
Kapilrishabh@gmail.com
Noida , Jun 15, 2015

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