Monday, March 23, 2015

Kapil Jain's Story : Motor cycle hoarding



यादें लड़क़पन की कपिल जैन के साथ :
Motor cycle hoarding
संडे , मार्च 22 , 2015 नॉएडा , इंडिया


हम सब दोस्त हर शाम को इकहटे होकर खेलते थे
और कभी गप्पे लगते थे बहुत ही मजे आते थे ,
क्या दिन थे वो

एक दिन इतवार की बात है उसी तरह शाम को गप्पे लग रही थी की मैने बताया की यारों कमाल को गया

पंचकुईया रोड के गोल चक्कर पर शमशान के सामने एक बहुत बडी होर्डिंग लगी है यामाहा मोटरसाइकिल के नई मॉडल की एडवरटाइजिंग के लिए,
क्या दिमाग़ लगाया है की मोटरसाइकिल की फ़ोटो की बज़ाय , असली मोटरसाइकिल ही होर्डिंग पर टांग दी है

मेरी ज़िन्दगी की विडंबना सदा से ही रही है की मेरी छवि बहुत गप्पी वाली रही है , शायद वक़्त से आगे ,
पता नहीं क्यों , बात सिद्ध हमेशा करनी पड़ती थी.
यही बात आगे मेरी ताक़त बनी

वही हुआ उस दिन , सारे दोस्तों ने वो मज़ाक बनाया की मूड ही बिगड़ गया , पर उससे क्या होना था ,
मज़ाक मखोल में बदल गया , अब माहौल बर्दाश्त के बाहर था , मैने कहा सबको , मानना है हो मानो , नहीं तो सब खुद ही चलकर की देख लो चार पांच किलोमीटर चलने की ही तो बात है , वैसे भी अभी शाम के पांच ही तो बाजे है , सात बजे तक भी घर वापस आ गए तो मम्मी से डांट नहीं पड़ेगी ।

मेरी अपनी बात पर यकीन या मेरे दोस्तों को इस बात की अजीबोग़रीब वास्तिविकता पर संदेह या दिलचस्पी , पता नहीं क्या , कुछ तो था की सब चलने को तुरंत खड़े हो गए ।

छटी सातवी मे पढ़ते रहे होंगे सब , कभी पहले अपने मौहल्ले से बाहर बिना किसी बड़े के गए नहीं थे , यह बात उठी तो किसी ने कहा की चलते है , हम करीब चौदह पंद्रह दोस्त होंगे ।

पंचकुईया रोड का गोल चक्कर , आज भी दिल्ली शहर का लगभग सेंटर पॉइंट है , गाये बगाहे शहरियों को पार करना ही पड़ता है , उस तरफ चलना शुरू हुए ।

रास्ते भर के आपने हालात के बारे में सोचते आज पैंतीस साल बाद भी बहुत हँसी आती है , की मेरे सबसे प्यारे दोस्तों ने मेरा मज़ाक बना बना कर मेरी हालत कुछ ऐसी कर दी की मेरा आँसु बस अब टपका या कहाँ अटका पता नही।

तीस चालीस मिनट लगे होंगे पहुँचने में ,
होर्डिंग दिखा , सुर्ख़ लाल रंग की चमकदार मोटरसाइकिल , उस पर पड़ती रौशनी जो खास उसी के लिऐ लगाई गयी थी , दिल की धड़कन को संगीतबद्ध किये हुए थी । उस समय तक हम सब सिर्फ साइकिल ही चलते थे , मोटरसाइकिल चलाने की उम्र अभी आयी नहीं थी ।

सबने देखा , आँखों में विस्मित , विश्वासमयता , चमक क्या क्या नहीं था , सभी कुछ था ।

वापसी का सफ़र कितना ख़ामोश था
मेरे यार ज़िंदाबाद .
आज सभी संसार भर नाप चुके है
सुर्ख़ लाल मोटरसाइकिल पर अपनी दिलरुबा को साथ लेकर चाँद का सफ़र अभी बाक़ी है ......


Kapil Jain
Kapilrishabh@gmail.com

1 comment:

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